सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा आदमी ।
न जाने क्या - क्या और गुल खिलाएगा आदमी ॥
१ आदमी बनाने की फैक्टरी लगाएगा आदमी ।
शक्ल - सूरत से जैसा चाहोगे लिंग से मिल जाएगा मिल जाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी वो भी बिना किसी संगम के ।
संगम तो बस हो जायेंगे साधन मनोरंजन के ।
कई - कई दिनों तक वें इक - दूजे की सूरत ना देख पाएंगे ।
कुचल देंगे अरमान स्वार्थ से , दूजे की जरुरत ना देख पाएंगे ।
देखो ख़ुद के बनाये जाल में कैसे ख़ुद ही शिकार हो जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा ......................... ॥
२ पैसा ही पैसा होगा पैसे के लिए ही आदमी कर रहा भागदोड़ होगा ।
इधर ही नहीं उधर ही नहीं तमाशा ये ही चारो ओर होगा ।
इन्सान की इज्जत नहीं होगी , पैसा हो भगवान् होगा ।
बस पैसा वाला बुद्धिमान और विद्वान होगा ।
इज्जत - बेइज्जत की फिकर कहाँ पैसे के लिए ही आदमी कुर्बान होगा ।
पैसा ही माँ - बाप , भाई - बहन धर्म और ईमान होगा ।
प्रेम - मुह्हबत , भाईचारा हो जायेंगे बस सपने ।
गैरों की तो बात दूर वो भी गैर हो जायेंगे जो हैं अपने ।
पैसे के लिए अपनों को मिटा देगा आदमी ।
पैसे के लिए अपनी सरजमीं को भुला देगा आदमी ।
क्या इंसानियत से इतना गिर जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा आदमी ॥
ना जाने क्या क्या गुल और खिलायेगा आदमी ॥ .........................॥
प्रेम सिंह
न जाने क्या - क्या और गुल खिलाएगा आदमी ॥
१ आदमी बनाने की फैक्टरी लगाएगा आदमी ।
शक्ल - सूरत से जैसा चाहोगे लिंग से मिल जाएगा मिल जाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी वो भी बिना किसी संगम के ।
संगम तो बस हो जायेंगे साधन मनोरंजन के ।
कई - कई दिनों तक वें इक - दूजे की सूरत ना देख पाएंगे ।
कुचल देंगे अरमान स्वार्थ से , दूजे की जरुरत ना देख पाएंगे ।
देखो ख़ुद के बनाये जाल में कैसे ख़ुद ही शिकार हो जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा ......................... ॥
२ पैसा ही पैसा होगा पैसे के लिए ही आदमी कर रहा भागदोड़ होगा ।
इधर ही नहीं उधर ही नहीं तमाशा ये ही चारो ओर होगा ।
इन्सान की इज्जत नहीं होगी , पैसा हो भगवान् होगा ।
बस पैसा वाला बुद्धिमान और विद्वान होगा ।
इज्जत - बेइज्जत की फिकर कहाँ पैसे के लिए ही आदमी कुर्बान होगा ।
पैसा ही माँ - बाप , भाई - बहन धर्म और ईमान होगा ।
प्रेम - मुह्हबत , भाईचारा हो जायेंगे बस सपने ।
गैरों की तो बात दूर वो भी गैर हो जायेंगे जो हैं अपने ।
पैसे के लिए अपनों को मिटा देगा आदमी ।
पैसे के लिए अपनी सरजमीं को भुला देगा आदमी ।
क्या इंसानियत से इतना गिर जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा आदमी ॥
ना जाने क्या क्या गुल और खिलायेगा आदमी ॥ .........................॥
प्रेम सिंह
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