सोमवार, 23 अप्रैल 2012

मेरी जान

... मेरी जान रै ।
लिये कहया मेरा मान रै ॥

1  दिन-रात मै तड़पे जा सू ।
तेरी खातर मै तरसे जा सू ॥
तेरे तै होग्या प्यार गोरी ।
मत करिए इंकार छोरी ॥
मेरी लिकड़ ज्यागी जान रै ....

2   साचे दिल तै प्यार करू , न टाइम पास मै करदा हू ।
तन -मान -धन -वचन और करम तै मै तेरे ऊपर मरदा हू ।
तेरे बिना मैंने चैन नहीं याद तनै हर साँस मै करदा हू ।
जै तू भी देदे साथ मेरा तो ना क्याहे तै डरदा हू ।
तेरे मिलण की अर्ज रोज ईश्वर तै भी करदा हू ॥
मेरी सुणेगा वो भगवान रै .....

3   साबत दिन मैंने चैन नहीं आखायाँ मै कट जा सै रात ।
आग बदन मै लाग ज्या सै जब होवै सै बरसात । सोचू तू धोरै होंदी तो कर लेंदा जी भरकै बात।
तू ना हो जब मान मसोस कै रहै ज्या सू ।
तेरी याद घंणी आव सै , मेरा काट कालजा खाव सै ।
जी चाहव सै हम होज्या दो जिस्म एक जान रै .....

4  तनै याद करदा करदा उठ लू सू याद करदा करदा सो ज्या सू ।
खालिए नहीं कई बार तो कम करदा करदा भी तेरे ख्याला मै खो ज्या सू ।
तू जब भी आव सै तनै देख कई ब्होत घणा खुश हो ज्या सू ।
इसा जी करै तेरी भाज कई भर लू कोली ।
ब्होत घंणी मनै प्यारी लागे तेरी सीरत सूरत सादी भोली ।
आंख बरस ज्या तनै देखण नै , कान तरस ज्या सुणन तेरी मिश्री तै मीठी जुबान रै ।
साची बात लिख दी मनै ना करा कोई झूठा बयान रै ...........................

                                                                                प्रेम

रविवार, 22 अप्रैल 2012

आदमी

सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा आदमी ।
न जाने क्या - क्या और गुल खिलाएगा आदमी ॥
१ आदमी बनाने की फैक्टरी लगाएगा आदमी ।
शक्ल - सूरत से जैसा चाहोगे लिंग से मिल जाएगा मिल जाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी ।
आदमी को फैक्ट्री में बनाएगा आदमी वो भी बिना किसी संगम के ।
संगम तो बस हो जायेंगे साधन मनोरंजन के ।
कई - कई दिनों तक वें इक - दूजे की सूरत ना देख पाएंगे ।
कुचल देंगे अरमान स्वार्थ से , दूजे की जरुरत ना देख पाएंगे ।
देखो ख़ुद के बनाये जाल में कैसे ख़ुद ही शिकार हो जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा ......................... ॥
२ पैसा ही पैसा होगा पैसे के लिए ही आदमी कर रहा भागदोड़ होगा ।
इधर ही नहीं उधर ही नहीं तमाशा ये ही चारो ओर होगा ।
इन्सान की इज्जत नहीं होगी , पैसा हो भगवान् होगा ।
बस पैसा वाला बुद्धिमान और विद्वान होगा ।
इज्जत - बेइज्जत की फिकर कहाँ पैसे के लिए ही आदमी कुर्बान होगा ।
पैसा ही माँ - बाप , भाई - बहन धर्म और ईमान होगा ।
प्रेम - मुह्हबत , भाईचारा हो जायेंगे बस सपने ।
गैरों की तो बात दूर वो भी गैर हो जायेंगे जो हैं अपने ।
पैसे के लिए अपनों को मिटा देगा आदमी ।
पैसे के लिए अपनी सरजमीं को भुला देगा आदमी ।
क्या इंसानियत से इतना गिर जाएगा आदमी ॥
सोचो जरा कल कैसा हो जाएगा आदमी ॥
ना जाने क्या क्या गुल और खिलायेगा आदमी ॥ .........................॥

                                                                                      प्रेम सिंह
सीखा है मैंने तूफानों से लड़ना आँधियों से खेलना ।
पर्वतों पर दोड़ना बिजलियों से टकराना तो मेरा शोक है पुराना ।
हवा का रुख मोड़ दूंगा मै , लहरों को भी पानी - पानी कर के छोड़ दूंगा मै ।
तुम क्या बात करते हो मंजिल को पाने की ।
अरे खुद मंजिल की तमन्ना है मेरे पास आने की ॥

                                                                   प्रेम सिंह
ख्याल तेरे सिवाय किसी और का करना गुनाह समझाता हूँ मैं ।
तू ही मेरी जिन्दगी , तू ही मेरी आरजू तुझको खुदा समझता हूँ मैं ॥
प्रेम
तू जाए तो जान जाती है , तू आए तो चैन आता है ।कैसे समझाऊ तुझे हॉल ए दिल अब मुझसे तुझ बिन नही रहा जाता है ॥
प्रेम
एक जनवरी

आज साल का दिन प्रथमा ।
उमड़ रहा है हृदय में प्यार प्रियतमा ॥
हृदय में प्यार प्रियतमा मानो कोई उफनती हुई नदी हो ,जो तोड़ कर सब सीमाओं को , बंधनों को , वर्जनाओं को ,समा जाना चाहती है तेरे दिल के रेगिस्तान में , और खो देना चाहती है खुद को फूल में सुगंध के समान में ॥
चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर सकता बेबस हू मजबूर हू।
मिली नहीं तू भी  आज मुझे  मैं भी तुमसे दूर  हू ।।
दूर हु बस जिस्म से दिल से कभी भी नहीं।
आई ना याद तेरी पल नहीं आया कभी भी ।।
ये यादें तेरी बनकर हथियार काटती है मुझे।
उठती है एक तोड़ देने वाली तरंग दिल में काश समझ आये तूजे।।
आ जाओ जल्दी अब मैं खो देना चाहता हू खुद को तुझ में।
जिस्म दो हों मगर जान एक हो हममें।
देखो जो बाहर से तो तू नजर आये।
लेकिन झांके कोई अंदर तो हम मुस्कराये।
क्योंकि जान हो , अरमान हो, आबरू हो सम्मान हो। ।
                                                                                ....  प्रेम