रविवार, 22 अप्रैल 2012

एक जनवरी

आज साल का दिन प्रथमा ।
उमड़ रहा है हृदय में प्यार प्रियतमा ॥
हृदय में प्यार प्रियतमा मानो कोई उफनती हुई नदी हो ,जो तोड़ कर सब सीमाओं को , बंधनों को , वर्जनाओं को ,समा जाना चाहती है तेरे दिल के रेगिस्तान में , और खो देना चाहती है खुद को फूल में सुगंध के समान में ॥
चाहकर भी मैं कुछ नहीं कर सकता बेबस हू मजबूर हू।
मिली नहीं तू भी  आज मुझे  मैं भी तुमसे दूर  हू ।।
दूर हु बस जिस्म से दिल से कभी भी नहीं।
आई ना याद तेरी पल नहीं आया कभी भी ।।
ये यादें तेरी बनकर हथियार काटती है मुझे।
उठती है एक तोड़ देने वाली तरंग दिल में काश समझ आये तूजे।।
आ जाओ जल्दी अब मैं खो देना चाहता हू खुद को तुझ में।
जिस्म दो हों मगर जान एक हो हममें।
देखो जो बाहर से तो तू नजर आये।
लेकिन झांके कोई अंदर तो हम मुस्कराये।
क्योंकि जान हो , अरमान हो, आबरू हो सम्मान हो। ।
                                                                                ....  प्रेम 

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