शनिवार, 3 सितंबर 2016


पागल

मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग  
कहंदे नी लोग
मैं पागल हुआ

1.  सारी-सारी रात मैंनू नींद नहीं आंदी, 
   हरदम तेरी यादां सतांदी 
   भूख हीं लगदी, प्यास नहीं जगदी 
   आंख ये तेरी राह तकदी 
   जानें कब होगी मुलाकात  
   आएगी मिलन दी वो रात  
   जब मेरे हाथों में होगा तेरा हाथ 
   जिसके लिए मैं रब्ब से भी दुआ, करदा नी रोज
  ...... कहंदे नी लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।

2 किं दसूं तैनू दिल दा हाल
  एक-एक पल बीते जैसे पूरा साल
  खोया रहूं मैं ख्वाबों में तेरे 
  दुनिया उड़ांदी मखौल ये मेरे 
  कोई मैंनू आशिक दसदा,  कोई मैनू पागल कहंदा 
  इश्क दा भूत जूतां नाल जैंदा
  कोई-कोई, चुप वी रहंदा  
  तुसी माने या ना माने   
  असीं तां हां तुहाडे दीवाने 
  तुहाडे नाम दा मैंनू ले लिया जोग
 ...... कहंदे नी लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।

3  आगे-पीछे, 
   ऊपर -नीचे  दाएं-बाएं 
   नजर ये सूरत, तेरी ही आए
   दिल-दिमाग तू रुह विच बसगी
   मुहब्बत है दिलां दा सौदा, लो मैंनू दस दी

   घूंट सबर का, और ज्यादा भरा नहीं जैंदा

   मौत जे आए एक दिन मर जावां, रोज-रोज मरा नहीं जैंदा

   इज्जत-बेज्जती भूला दिए मैंनू, जमाने से अब तो, डरा नहीं जैंदा

   आ जा कुड़िए रहा नहीं जैंदा
 
   सहा नहीं जैंदा तुझसे वियोग
   ..... कहंदे नीं लोग मैं, मैंनू ल्गयां 
इश्क दा रोग, पागल हुआ।

4   नहीं चाहिए असीं महल-अटारी
    नहीं चाहिए मैंनू घोड़ा सवारी
 
    नहीं चाहिए सानूं धन और दौलत

    नहीं चाहिए मैंनू कोई शोहरत
    मैंनू तो चाहिए, तू मेरी प्यारी तेरी मुहब्बत

    तेरी मुहब्बत के सिवाए, सानूं दूजा ना कोई लोभ

    ..... कहंदे नीं लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।
                                                                            ------ प्रेम