रविवार, 20 सितंबर 2015


                हसीनों की गलियों से

मैं डरता रहता  हूँ , कहीं प्यार ना हो जाए,
बच के निकलता हूं हसीनों की गलियों से, कहीं आंखें चार ना हो जाएं।
1
ये लूट लेती हैं, दिल का चैन करार,
खुद का भी होश नहीं रहता, जब हो जाता है प्यार,
एक मुस्कान ही काफी है इनको, ना चाहिए कोई हथियार।
गोरे-गोरे गालों से, सुर्ख होठों के प्यालों से,
लंबे घने काले बालों से,
नशीले नयन मतवालों से, कहीं वा ना हो जाए .......…………………
2  
भूख नहीं लगेगी, प्यास नहीं लगेगी,
जिंदगी की भी फिर, आस नहीं रहेगी,
करवटें बदलता रहूंगा, रातों को फिर नींद नहीं आएगी,
ख्वाब में भी बस तस्वीर, उसी की नजर आएगी,
निवाला ना उतरेगा हलक से नीचे, जब तक वो शक्ल ना दिखाएगी,
मैं ढूंढता रहूंगा उसके कदमों के निशां, वो जिधर - जिधर जाएगी,
पाने को उसके चक्कर में,
बस एक ही इस फिक्र में,
प्राण भी एक दिन, शरीर से बाहर ना हो जाए.…………… 
3  
बस नहीं चलती किसी की, कुछ इनके आगे,
मैं तो कुछ भी नहीं , बड़े - बड़े  मैदान से भागे,
ऋषि - मुनि योद्धा भी हार गए, परी हूर के आगे,
खुदा की कायनात भी फीकी लगती है, इनके नूर के आगे,
बल-बुद्धि, पैसा भी नाचते हैं इनके सबाब के आगे,
दुनिया का विज्ञान फेल है, इनके हिसाब के आगे,
आंखों को कुछ नहीं अच्छा लगता, इनके ख्वाब के आगे,
 
जिंदगी में कुछ करने का,
आग के दरिया से बच कर गुजरने का,
अधूरी मौत ना मरने का
कहीं सपना मेरा बेकार ना हो जाए.………………… . …
4
फूलों सी महकती रहती हैं, नदी-झील के किनारे,
सांझ-सवेरे फंस ना जाए, बचकर रहना मेरे प्यारे,
अपने हुस्न से गिराती हैं बिजलियां,
जाने कब रिझा लेती हैं, ये रंग- बिरंगी तितलियां,
ऐसा बुनती हैं जाल ये, मीठे- मीठे बोलों से,
बचना मुश्किल है, इन दहकते शोलों से,
झट से अपना बना लेती हैं, ये जुल्फे फैलाकर,
भंवरा खुद ही घिर जाता है फूल में, रस का लालच पाकर,
फिर इन मासूम कातिलों के आगे, रहना पड़ता है गर्दन झुकाकर,
फिर ये मिलें तो चैन मिले,
कब बात हो, कब नयन मिले,
दिन मिले फिर रैन मिले,
लगा लें गले ईद के ही बहाने, जल्दी से  ऐसा कोई त्योहार भी ना आए.…………
5  
ये पानी में भी आग लगा देती हैं,
सोये जिन्न को जगा देती हैं,
फिर तरसा देती हैं, ये लबों का प्याला पिलाने को,
जी चाहे तो लुटा देती हैं, एक ही शराबी पर मयखाने को
सब कुछ भूलकर बरसा देती हैं, अपनी मस्त जवानी को,
क्या- क्या मैं नाम दूं, इन हसीनों की कहानी को,
एक बार जो लग गया इनका चस्का ,
तन, मन, धन गया समझो उसका
फिर कोई भी नुस्खा इस दलदल से बाहर ना ले जाए। ……
                                                                                               
प्रेम
,





कोई टिप्पणी नहीं: