शनिवार, 26 सितंबर 2015

                   खाली हाथ

 


हाथ है खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को मिटाने चला हूँ

तुम तुम रहो , हम हम रहें
फूल में  सुगन्ध ज्यों एक दूजे के दिलों में रहें
ये है तुम्हारा , ये है हमारा ना सोचें ना कहें
मेरे तुम्हारे बीच की दीवारों को गिराने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को ............

जाति - मजहब के नाम पर लड़ता है आदमी
पीने को इक- दूजे का खून पीछे पड़ता है आदमी
मै पूछता हूँ उससे कि क्या होने को इंसा मजहब ही है लाजमी
वो सोचता है कि तू है छोटा , मै हूँ बडा आदमी
खुदा ने बनाया सबको बराबर फ़िर भेद ये क्यों करता है आदमी
छोटे बड़े के इन्ही संशयों से परदा उठाने चला हूँ ।।
दिलों में भरी नफरत को ..........

एक ही सबका मालिक रखता वही खैर है
हमें सबसे दोस्ती ना किसी से भी बैर है
सबके लिए मुहबत है दिल में ना किसी के लिए जहर है
सब अपने हैं महफ़िल में ना कोई गैर है
आज गैरों को ही गैरों के दिल में बिठाने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को ............. ।।

हाथों से मै अपने दौलत प्यार बाटूँ
हर बेचैन दिल को करार बाटूँ
कर दे ख़त्म जो नफ़रत को जड़ से ऐसे मैं हथियार बाटूँ
जोड़ दे दिलों को दिलों से , रूह को रूह से ऐसे मैं विचार बाटूँ
मुझे इश्क है अच्छाई से ये ही बात तुमको बताने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को मिटने चला हूँ
हाथ हैं खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ .............
                                                                                                प्रेम


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