रविवार, 15 मार्च 2015

          तुम्हे फूल कहूं  या चांद




1  मैं तुम्हे फूल कहूं या चांद का टुकड़ा,  

   ये काली जुल्फे, सुनहरा बदन, 

   क्या गजब का मुखड़ा।।

   गिरा करके इन काली जुल्फों को हसीन बदन पर 

   तुम यूं ना हम पर बिजली गिराया करो,  

   गुजर जाती हो दूर से ही घायल करके, तुम यूं ना दूर 

   से जाया करो,  कुछ अपनी कहो कुछ मेरी सुनो 

   कभी तो पास आया करो,

   दिल चुराकर नजरें चुराना ठीक नहीं, 

   नजर तो हमसे मिलाया करो।

   देखा है जब से तुम को 

   दिल का चैन रहता है उखड़ा उखड़ा।। 


2   देखा है जबसे तुम को 

    तुझमें इतना खो गए हैं हम,

    न जाने कब दिन निकलता है कब होती है रात 

    तुझमें इतना मशगूल हो गए हैं हम,   

    देखते ही तुमको घायल हो गए थे हम,

    तुझ बिन अब चैन कहां 

   तेरी चाहत के कायल हो गए हैं हम।

   तुम्हारी ये मदमस्त जवानी 

   मानो कल - कल करती हुई  

   कोई नदी बह रही हो,   कूद जा बेधड़क मुसाफिर मुझमें 

   नजरों ये मानो ये कह  रही हो।   पाकर तुझको मुझको मिलेगा अपार सुखड़ा।।


3    उतरे नहीं जिंदगीभर जिसका नशा  सनम तुम वो शराब हो,

    सच हो सके कठिनाई से तुम वो सुनहरा ख्वाब हो।

    तुम्हारी गोरी बहिया, नरम कलाई और लचकती हुई ये  पतली
    कमर,

    तुम्हारी ये झील सी नीली आंखे और ये जवां उमर,

    ये छोड़ते नहीं कोई कसर।

   तुम्हारा ये कातिल हुस्न तो हर किसी के होश  उड़ा दे,

    तुम्हारी खूबसूरती तो तिनके में भी जोश  ला दे,

   देखकर तुम्हारी चंचल शोख अदाओं को चांद भी  शर्मा दे।

    धूप में यूं ना निकला करो, 

    गिरा करके पर्दा चला करो 

  कहीं कोई नजर ना लगा दे देखकर ये हसीन मुखड़ा।।

                                                                                 प्रेम 

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