खाली हाथ
हाथ है खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ ।
दिलों में भरी नफरत को मिटाने चला हूँ ॥
१ तुम न तुम रहो , हम न हम रहें ।
फूल में
सुगन्ध ज्यों एक दूजे के दिलों में रहें ।
ये है तुम्हारा , ये है हमारा ना सोचें ना कहें ।
मेरे तुम्हारे बीच की दीवारों को गिराने चला हूँ ॥
दिलों में भरी नफरत को ............ ॥
२ जाति - मजहब के नाम पर लड़ता है आदमी ।
पीने को इक- दूजे का खून पीछे पड़ता है आदमी ।
मै पूछता हूँ उससे कि क्या होने को इंसा मजहब ही है लाजमी ।
वो सोचता है कि तू है छोटा , मै हूँ बडा आदमी ।
खुदा ने बनाया सबको बराबर फ़िर भेद ये क्यों करता है आदमी ।
छोटे बड़े के इन्ही संशयों से परदा उठाने चला हूँ ।।
दिलों में भरी नफरत को .......... ॥
३ एक ही सबका मालिक रखता वही खैर है ।
हमें सबसे दोस्ती ना किसी से भी बैर है ।
सबके लिए मुहबत है दिल में ना किसी के लिए जहर है ।
सब अपने हैं महफ़िल में ना कोई गैर है ।
आज गैरों को ही गैरों के दिल में बिठाने चला हूँ । ।
दिलों में भरी नफरत को ............. ।।
४ हाथों से मै अपने दौलत ऐ प्यार बाटूँ ।
हर बेचैन दिल को करार बाटूँ ।
कर दे ख़त्म जो नफ़रत को जड़ से ऐसे मैं हथियार बाटूँ ।
जोड़ दे दिलों को दिलों से , रूह को रूह से ऐसे मैं विचार बाटूँ ।
मुझे इश्क है अच्छाई से ये ही बात तुमको बताने चला हूँ ॥
दिलों में भरी नफरत को मिटने चला हूँ ॥
हाथ हैं खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ ॥ .............॥
प्रेम