प्रेम पत्र
आवाज़-ए-रूह
सोमवार, 6 अप्रैल 2015
न सरहदों को, न मजहबों को मानती है मुहब्बत
न उम्र की फ़िक्र न, कोई जुबान जानती है मुहब्बत
रंग रूप नहीं, रूह को रूह से पहचानती है मुहब्बत
ये बेखुद बेपरवाह है, करती वही जो खुद ठानती
है मुहब्बत
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