सोमवार, 16 सितंबर 2024

कबीरों का कोई मजहब नहीं होता....
राजा- वजीरों का कोई मजहब नहीं होता....
फकीरों का कोई मजहब नहीं होता....
शूरवीरों का कोई मजहब नहीं होता...

                                                -प्रेम सिंह

 

जब दिल हो जवान तो उम्र की क्या बात है...
मैं ज़माने से नहीं डरता अगर तू मेरे साथ है.....

                                                             ------  प्रेम सिंह

शनिवार, 30 अप्रैल 2022

मेरी महबूबा आएगी

 धीरे धीरे चल हवा, ठंडी होकर,
 के मेरी महबूबा आएगी
दिलरुबा आएगी।  
1.      बादलों तुम भी छा जाओ,
फूलो तुम भी खिल खिलाओ,
 बिखेरो खुशबू, हवा को महकाओ
सूरज तुम भी छुप जाओ,
गर्मी वो सह ना पाएगी,
गर्मी से जान उसकी निकल ही जाएगी,
गर्मी में पिघल जाएगा उसका कोमल बदन,
घटाओ तुम भी साथ दो, करो कुछ यत्न,
जब  जब घटा छाएगी तो.. मेरी दिलरुबा आएगी।
 के मेरी महबूबा आएगी
दिलरुबा आएगी।  
2.      क्या जिक्र करू मैं उसका, वो लाजवाब है,
कृति खुदा की वो बड़ी नायाब है
 बेनजीर है उसका हुस्न, कातिल सवाब है,
मृग से नयन उसके, गाल ज्यों कोई गुलाब है,
होठ जैसे कोई खिलती कली हो,
सूरत उसकी ज्यों कोई मूर्त ढली हो,
दूध से दांत उसके,
नरम कलाई वाले कोमल हाथ उसके,
उसकी अदा सबसे जुदा
उसको बनाकर खुश हुआ था खुदा
चांद  तुम भी देखना नीले गगन से
तुमसे भी हसीं है कोई चमन में
राख हो जाना तुम जलन से
हया तुम पर भी छा जाएगी।
 के मेरी महबूबा आएगी
 दिलरुबा आएगी।  
3.       मेरे दोस्त पंछियो तुम भी चहचाह देना
जब वो आए तो उसके मन की  थाह लेना
कोयल तुम हूंकना आम की डाली पर
चिड़िया तुम टूट पड़ना अन्न की बाली पर,
तोता और मैना तुम होना शहतूत के दरखत पर
सारसो तुम भी जाना उस वक्त पर
गिलहरी पेड़ से उतर आना   
हाथों में लेकर फली कोई चबाना,  
कुतो तुम भी जरा दुम हिलाना
पीपल के नीचे मोर तुम नाचना उसको नचाना
तितलियां तुम दौड़ी चली आना
झीलो झरनो नदियो कोई गान गाओ ,
धुन कोई ऐसी लगाओ
जो मन उसका लुभाएगी  के मेरी महबूबा आएगी।  के मेरी महबूबा आएगी
 दिलरुबा आएगी।  
4.       समुद्र बुलाएगा उसे
करवटें बदलेंगी लहरें
जैसे राग कोई सुनाएगा उसे
उधर पर्वत देगा आवाज,
मरूस्थल की रेत और हिमसागर भी याद करेगा आज
वो जहां जहा जाएगी बहार भी साथ साथ जाएगी
 के मेरी महबूबा आएगी
दिलरुबा आएगी।  
             ---  प्रेम


शनिवार, 3 सितंबर 2016


पागल

मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग  
कहंदे नी लोग
मैं पागल हुआ

1.  सारी-सारी रात मैंनू नींद नहीं आंदी, 
   हरदम तेरी यादां सतांदी 
   भूख हीं लगदी, प्यास नहीं जगदी 
   आंख ये तेरी राह तकदी 
   जानें कब होगी मुलाकात  
   आएगी मिलन दी वो रात  
   जब मेरे हाथों में होगा तेरा हाथ 
   जिसके लिए मैं रब्ब से भी दुआ, करदा नी रोज
  ...... कहंदे नी लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।

2 किं दसूं तैनू दिल दा हाल
  एक-एक पल बीते जैसे पूरा साल
  खोया रहूं मैं ख्वाबों में तेरे 
  दुनिया उड़ांदी मखौल ये मेरे 
  कोई मैंनू आशिक दसदा,  कोई मैनू पागल कहंदा 
  इश्क दा भूत जूतां नाल जैंदा
  कोई-कोई, चुप वी रहंदा  
  तुसी माने या ना माने   
  असीं तां हां तुहाडे दीवाने 
  तुहाडे नाम दा मैंनू ले लिया जोग
 ...... कहंदे नी लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।

3  आगे-पीछे, 
   ऊपर -नीचे  दाएं-बाएं 
   नजर ये सूरत, तेरी ही आए
   दिल-दिमाग तू रुह विच बसगी
   मुहब्बत है दिलां दा सौदा, लो मैंनू दस दी

   घूंट सबर का, और ज्यादा भरा नहीं जैंदा

   मौत जे आए एक दिन मर जावां, रोज-रोज मरा नहीं जैंदा

   इज्जत-बेज्जती भूला दिए मैंनू, जमाने से अब तो, डरा नहीं जैंदा

   आ जा कुड़िए रहा नहीं जैंदा
 
   सहा नहीं जैंदा तुझसे वियोग
   ..... कहंदे नीं लोग मैं, मैंनू ल्गयां 
इश्क दा रोग, पागल हुआ।

4   नहीं चाहिए असीं महल-अटारी
    नहीं चाहिए मैंनू घोड़ा सवारी
 
    नहीं चाहिए सानूं धन और दौलत

    नहीं चाहिए मैंनू कोई शोहरत
    मैंनू तो चाहिए, तू मेरी प्यारी तेरी मुहब्बत

    तेरी मुहब्बत के सिवाए, सानूं दूजा ना कोई लोभ

    ..... कहंदे नीं लोग, मैंनू ल्गयां इश्क दा रोग, मैं पागल हुआ।
                                                                            ------ प्रेम

शनिवार, 26 सितंबर 2015

                   खाली हाथ

 


हाथ है खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को मिटाने चला हूँ

तुम तुम रहो , हम हम रहें
फूल में  सुगन्ध ज्यों एक दूजे के दिलों में रहें
ये है तुम्हारा , ये है हमारा ना सोचें ना कहें
मेरे तुम्हारे बीच की दीवारों को गिराने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को ............

जाति - मजहब के नाम पर लड़ता है आदमी
पीने को इक- दूजे का खून पीछे पड़ता है आदमी
मै पूछता हूँ उससे कि क्या होने को इंसा मजहब ही है लाजमी
वो सोचता है कि तू है छोटा , मै हूँ बडा आदमी
खुदा ने बनाया सबको बराबर फ़िर भेद ये क्यों करता है आदमी
छोटे बड़े के इन्ही संशयों से परदा उठाने चला हूँ ।।
दिलों में भरी नफरत को ..........

एक ही सबका मालिक रखता वही खैर है
हमें सबसे दोस्ती ना किसी से भी बैर है
सबके लिए मुहबत है दिल में ना किसी के लिए जहर है
सब अपने हैं महफ़िल में ना कोई गैर है
आज गैरों को ही गैरों के दिल में बिठाने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को ............. ।।

हाथों से मै अपने दौलत प्यार बाटूँ
हर बेचैन दिल को करार बाटूँ
कर दे ख़त्म जो नफ़रत को जड़ से ऐसे मैं हथियार बाटूँ
जोड़ दे दिलों को दिलों से , रूह को रूह से ऐसे मैं विचार बाटूँ
मुझे इश्क है अच्छाई से ये ही बात तुमको बताने चला हूँ
दिलों में भरी नफरत को मिटने चला हूँ
हाथ हैं खाली मगर दिल का खजाना लुटाने चला हूँ .............
                                                                                                प्रेम