फूल भी शर्माने लगे हैं तुम्हे देखकर
सुबह भी करती है स्वागत तुम्हारा नाजुक पैरों तले शबनम के मोती बिखेरकर
खिदमत में हो जाती संध्या भी हाजिर डूबते हुए सूर्य का आईना देखकर
चाँद भी छुप जाने लगा है बादलों में पीठ फेरकर
कल पूर्णिमा को भी चाँद नहीं निकला छत पे बस तुम्ही को देखकर